Sunday, September 4, 2011

बाँसी ज़िंदगी

ज़िंदगी__________

क्या है मेरी ज़िंदगी ?

शुरुवात में लगा था

होगी कुछ खट्टी कुछ मिठी..

थोडीसी नमकीन और हाँ ..

तुम्हारी तरह कुछ तिखी भी!

खैर ____________

अब ये है तो नहीं ...

बाँसी है मेरी ज़िंदगी ...

लगा था कभी जिनके सहारे जी पाऊँगी

वो लमहे जो तुमने और तुम्हारी याद ने पिरोये है

मेरी जेहन में ...वो सब अब बाँसे हो चुके है ....!

सर्दियोंमें __________

तुम्हारे संग बीते पल

एकसाथ जो फूँके मारी थी हवामें

और खिड़कियों पे उंगली से कुछ लिखना

वो सब सर्द हवा और फूँके अब बाँसे हो गये है ..!

बारिशमें ___________

भिगे हम और भिगे पल ........

वो बारिश जो भिगोती थी हमें

कभी तुम्हारे छत पर , कभी मेरे आँगन में

कभी स्टेशन पे और कभी कभी बस तुम्हारी बातोमें

वो बारिश ..वो बातें भी अब बाँसे हो गये है ....!

समंदरपे ___________

किनारे पे आपने पैरो के निशाँ छोड़कर ,

हाथ में हाथ लिए फिरते हम ...

रेत पर तिनके से हमारे नाम लिखना

और रेत का टीला बनाते समय

उसपर से तुम्हारी फिरती उंगलिया...

मानो कोई माँ अपने बच्चे के बालो में से

घुमा रही है आपनी उंगलिया......

वो किनारा ... वे अक्षर जो रेत पे लिखे थे ..

और वो घर जो तुमने बनाया था अब सब बाँसा हो गया है .....!

पल _____________

लगा था कभी जिनके सहारे जी पाऊँगी उम्रभर

वो पल .... वो सारे पल ;

जो मेरी जेहन में है वो सब अब बाँसे हो गये है ....!

सच _____________

लेकिन ज़िंदगी का आखरी सच तो यही है .....

भूखे को ... बाँसी रोटी भी ज़िंदगी से प्यारी होती है .....!

----------अवंती.

Friday, September 2, 2011

गली

कितने सालों बाद आज इस गली से गुज़र रही हूँ ...

छोटे थे हम ..याद है तुम्हे ?....स्कूल के दिनों...छुट्टियोंमे बाहर वो अमरूद वाला ठेला लगाये बैठता था ..

कितना मन करता था मेरा ..वह पच्चीस पैसे का एक अमरूद लेने का ...

लेकिन माँ के डांट से डरकर कभी लिया नहीं ...

तुम चुपके से लेकर आते थे घर में और झूटमूट से ही कहते थे "बूढी अम्मा के पेड़ के है ताईजी"

दिन गुज़रे साल बीते...

में एक शहर चली गयी और तुम दुसरे शहर ;

लेकिन जब भी आते तो वह बगीचे वाले अमरूद के पेड़ के पास ही मिलते थे ..

याद है तुम्हे ?....हमारे घर के आँगन में तुमने कुछ बीज बोये थे...

सिर्फ तुम ही थे जो उसे हर रोज पानी डाला करते थे...तुम्हारे जाने के बाद .. पेड़ प्यासा ही रहा ...

पेड़ पर हर साल ढेरो अमरूद आते है कुछ खट्टे कुछ मीठे बिलकुल तुम्हारी यादों की तरह ....

लेकिन अब डांटने वाला कोई नहीं न कोई चुपकेसे खिलानेवाला ....

कितने सालो बाद आज इस गली से गुज़र रही हूँ ....

यहाँ हम कभी लुकाछुपी खेला करते थे ...स्कूल की छुट्टियों में तुम लेकर आते थे तुम्हारे सारे चचेरे मौसेरे भाई बहनों को ..

और बूढी अम्मा के घर में छुपाना कितना अच्छा लगता था तुम्हे....

तुम्हारा मनपसंद खेल ..'लुकाछुपी '...

ज़िन्दगी भर यही तो खेलते आये हो मेरे साथ.. अपने आपके साथ ..

और अब तुम्हारे बाद तुम्हारी यादें भी यही खेल खेलती है ....

इसीलिए तो आयी हूँ इस गली में उस अमरूद वाले से ... उस अमरूद के पेड़ से... बूढी अम्मा के घर से

तुम्हारी यादों का पता पूछने ..उन्हें सिमटने.....

--------------अवंती

Thursday, September 1, 2011

बारिश..तुम..यादें

बारिश तो आ गयी ..वोही वो पहले वाली बारिश ....

लेकिन कागज की कश्तियाँ आज मिली नहीं ....

माँ से डांट खा कर भी उस वक़्त भीगा करते थे...

आज भी में भीगी लेकिन माँ ने डांटा नहीं ...तुम जो रहे नहीं .......

बारिश में भीगते हुए मुझपे छींटे उड़ना अच्छा लगता था तुम्हे ..

आज बारिश भी है छींटे भी है लेकिन तुम रहे नहीं ....

आज तो भीगने का मन नहीं था, सोचा था सुखालू सब कुछ

लेकिन भिगो दिया तुम्हारी यादों ने ..यादें तो है लेकिन उनमे भी तुम रहे नहीं

तुम्हारी यादेंभी अजीब है बिलकुल बारिश की तरह या फिर तुम्हारी तरह आती तो है बेवक्त बेहिसाब लेकिन रुकने का नाम नहीं... .

_अवंती