Friday, September 2, 2011

गली

कितने सालों बाद आज इस गली से गुज़र रही हूँ ...

छोटे थे हम ..याद है तुम्हे ?....स्कूल के दिनों...छुट्टियोंमे बाहर वो अमरूद वाला ठेला लगाये बैठता था ..

कितना मन करता था मेरा ..वह पच्चीस पैसे का एक अमरूद लेने का ...

लेकिन माँ के डांट से डरकर कभी लिया नहीं ...

तुम चुपके से लेकर आते थे घर में और झूटमूट से ही कहते थे "बूढी अम्मा के पेड़ के है ताईजी"

दिन गुज़रे साल बीते...

में एक शहर चली गयी और तुम दुसरे शहर ;

लेकिन जब भी आते तो वह बगीचे वाले अमरूद के पेड़ के पास ही मिलते थे ..

याद है तुम्हे ?....हमारे घर के आँगन में तुमने कुछ बीज बोये थे...

सिर्फ तुम ही थे जो उसे हर रोज पानी डाला करते थे...तुम्हारे जाने के बाद .. पेड़ प्यासा ही रहा ...

पेड़ पर हर साल ढेरो अमरूद आते है कुछ खट्टे कुछ मीठे बिलकुल तुम्हारी यादों की तरह ....

लेकिन अब डांटने वाला कोई नहीं न कोई चुपकेसे खिलानेवाला ....

कितने सालो बाद आज इस गली से गुज़र रही हूँ ....

यहाँ हम कभी लुकाछुपी खेला करते थे ...स्कूल की छुट्टियों में तुम लेकर आते थे तुम्हारे सारे चचेरे मौसेरे भाई बहनों को ..

और बूढी अम्मा के घर में छुपाना कितना अच्छा लगता था तुम्हे....

तुम्हारा मनपसंद खेल ..'लुकाछुपी '...

ज़िन्दगी भर यही तो खेलते आये हो मेरे साथ.. अपने आपके साथ ..

और अब तुम्हारे बाद तुम्हारी यादें भी यही खेल खेलती है ....

इसीलिए तो आयी हूँ इस गली में उस अमरूद वाले से ... उस अमरूद के पेड़ से... बूढी अम्मा के घर से

तुम्हारी यादों का पता पूछने ..उन्हें सिमटने.....

--------------अवंती