ज़िंदगी__________
क्या है मेरी ज़िंदगी ?
शुरुवात में लगा था
होगी कुछ खट्टी कुछ मिठी..
थोडीसी नमकीन और हाँ ..
तुम्हारी तरह कुछ तिखी भी!
खैर ____________
अब ये है तो नहीं ...
बाँसी है मेरी ज़िंदगी ...
लगा था कभी जिनके सहारे जी पाऊँगी
वो लमहे जो तुमने और तुम्हारी याद ने पिरोये है
मेरी जेहन में ...वो सब अब बाँसे हो चुके है ....!
सर्दियोंमें __________
तुम्हारे संग बीते पल
एकसाथ जो फूँके मारी थी हवामें
और खिड़कियों पे उंगली से कुछ लिखना
वो सब सर्द हवा और फूँके अब बाँसे हो गये है ..!
बारिशमें ___________
भिगे हम और भिगे पल ........
वो बारिश जो भिगोती थी हमें
कभी तुम्हारे छत पर , कभी मेरे आँगन में
कभी स्टेशन पे और कभी कभी बस तुम्हारी बातोमें
वो बारिश ..वो बातें भी अब बाँसे हो गये है ....!
समंदरपे ___________
किनारे पे आपने पैरो के निशाँ छोड़कर ,
हाथ में हाथ लिए फिरते हम ...
रेत पर तिनके से हमारे नाम लिखना
और रेत का टीला बनाते समय
उसपर से तुम्हारी फिरती उंगलिया...
मानो कोई माँ अपने बच्चे के बालो में से
घुमा रही है आपनी उंगलिया......
वो किनारा ... वे अक्षर जो रेत पे लिखे थे ..
और वो घर जो तुमने बनाया था अब सब बाँसा हो गया है .....!
पल _____________
लगा था कभी जिनके सहारे जी पाऊँगी उम्रभर
वो पल .... वो सारे पल ;
जो मेरी जेहन में है वो सब अब बाँसे हो गये है ....!
सच _____________
लेकिन ज़िंदगी का आखरी सच तो यही है .....
भूखे को ... बाँसी रोटी भी ज़िंदगी से प्यारी होती है .....!
----------अवंती.
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